भारतीय संविधान के जनक डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के जन्म दिवस पर विशेष
Ambedkar Jayanti 2024
2024 लोकसभा आम चुनाव में अपने मत का प्रयोग करना ही डॉक्टर बी आर अंबेडकर को सच्ची श्रद्धांजलि होगी----
Ambedkar Jayanti 2024: विश्व में महापुरुषों, महात्माओं और समाज में आदर्श रही विभुतियों का जन्मदिन उनके दर्शन, सोच और विचारों को आगे बढ़ाने के लिए मनाया जाता है ताकि वर्तमान पीढ़ी उनके जीवन चरित्र से प्रेरणा ले सके। इसी क्रम में आज न केवल भारत में बल्कि विश्व में बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर को बहुत ही श्रद्धा और गर्व के साथ याद किया जा रहा है। दूनिया में डॉ बी आर अंबेडकर को भारतीय संविधान के रचयिता के रूप में जाना जाता है । संविधान की श्रेष्ठता के कारण ही भारत दुनिया का सबसे मजबूत और महान लोकतांत्रिक देश है। डॉक्टर अंबेडकर का संविधान रचयिता बनने का सफर बहुत उतार चढ़ाव का रहा है। इतने बड़े संघर्ष के दौर में विरले ही इंसान होते हैं जो सफलता का यह मुकाम हासिल कर पाते हैं।
14 अप्रैल 1891 में आज ही के दिन मध्य प्रदेश के महू में माता भीमाबाई की कोख से पिता रामजी मालोजी सकपाल के घर जन्मे बच्चे का तब किसी को भी अंदाजा नहीं रहा होगा कि यह बालक एक दिन भारतरत्न ही नहीं बल्कि विश्व रत्न के रूप में चमकेगा। उनके संघर्ष का दौर बचपन से शुरू हो गया था। जब उन्हें स्कूल शिक्षा शुरू की तो उन्हें कदम कदम पर सामाजिक तिरस्कार झेलना पड़ा। यह दुनिया जानती है कि उनके साथ कक्षा में एक अछूत का व्यवहार किया जाता था। इस सब के बावजूद उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी और विभिन्न स्तरों पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। बड़ोदा रियासत के महाराज सयाजीराव गायकवाड़ ने उनकी प्रतिभा को देखते हुए विदेश में पढ़ाई के लिए भेजा और वजीफे के रूप आर्थिक सहायता दी। डॉ अंबेडकर कोलंबिया विश्वविद्यालय न्यूयॉर्क गए जहां से उन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि ग्रहण की। इसके साथ ही उन्होंने लंदन स्कूल आफ इकोनॉमिक्स और लंदन यूनिवर्सिटी से भी डॉक्टरेट किया। इस प्रकार से डॉक्टर बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने चार विषयों में डॉक्टरेट सहित कुल 26 डिग्रियां हासिल की । वे उस समय के सबसे शिक्षित व्यक्ति थे। आज भी अमेरिका की कोलंबिया विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में और लंदन विश्वविद्यालय में उनकी प्रतिमा है, जो हर भारतीय को गोरवांवित करती है। विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मामलों और भारत की राजनीतिक गतिविधियों समाज सुधार कार्यों में सक्रियता के कारण डॉक्टर बी आर अंबेडकर को अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिल चुकी थी।
देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब भारत के संविधान बनाने की बात आई तो महात्मा गांधी सहित अन्य बड़े नेताओं ने डॉ बी आर अंबेडकर को संविधान ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई। संविधान सभा का मसौदा तैयार करने के लिए 7 सदस्यों को भी ड्राफ्टिंग कमेटी का सदस्य बनाया गया । कमेटी के सदस्य कन्हैयालाल मुंशी, मोहम्मद सादुल्लाह, अल्लादि कृष्णस्वामी अय्यर, गोपाळ स्वामी अय्यंगार, एन. माधव राव और टीटी कृष्णामचारी थे। ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्य टी.टी कृष्णामचारी ने नवंबर 1948 में संविधान सभा में कहा कि 'मृत्यु, बीमारी, विदेश चले जाने व अन्य व्यस्तताओं' की वजह से कमेटी के ज्यादातर सदस्य मसौदा तैयार करने में योगदान नहीं दे पाए । इसके चलते संविधान तैयार करने का बोझ डॉ आंबेडकर पर आ पड़ा। उन्होंने देश के प्रति इसे अहं जिम्मेवारी मानते हुए 2 वर्ष 11 महीने 18 दिन में संविधान तैयार किया। जिस प्रामाणिकता के साथ डॉक्टर अंबेडकर ने संविधान में अधिकारों, कर्तव्यों, नीति निर्देशक सिद्धांतों, व आरक्षण सहित 395 प्रावधानों का वर्णन किया गया, यही डॉ बी आर अंबेडकर को संविधान रचयिता बनाता है। भारतीय परंपराओं, मान्यताओं, धर्म ,संस्कृतियों का सम्मान करते हुए संविधान में उदृत किया है। इससे भारतीय संविधान विश्व का सर्वोच्च संविधान है।
आजादी के बाद एक बार ऐसा मौका आया था जब 2 सितंबर 1953 को राज्यसभा में जोरदार बहस हो रही थी। राज्यपाल की शक्तियां बढ़ाने और अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा पर बाबा साहेब अड़ गए और आवेश में आकर उन्होंने ये बयान दिया था कि दलित और अल्पसंख्यकों के हितों पर कुठाराघात होगा तो इस संविधान को लागू करने का कोई औचित्य नहीं है।
डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने हिंदू कोड बिल, श्रम सुधार कानून, स्त्री - पुरुष वयस्कों को मत का अधिकार दिलवाया।
डॉ बी आर अंबेडकर एक संघर्षशील, कठिन परिश्रमी, समाज सुधारक, राष्ट्रवादी, मानवतावादी और समतावादी व्यक्तित्व के जीते जागते उदाहरण थे। उन्होंने सदैव शिक्षा पर बल दिया। वे कहते थे कि "शिक्षा उस शेरनी का दूध है जो पिएगा वो दहाड़ेगा"। उनका मतलब था कि जिस देश व समाज में शिक्षा का प्रचार प्रसार होगा वह राष्ट्र और समाज उतनी ही तरक्की करेगा। शिक्षा के प्रति उनकी संजीदगी दर्शाती है कि अंतिम दिनों में उनके घर में 15000 किताबें थी। उन्होंने अपनी आत्मकथा "वेटिंग फॉर विजा" में अपने जीवन में हुई सामाजिक विषमताओं को खुलकर लिखा है। उन्होंने यहां तक कह दिया था कि मैं हिंदू धर्म में पैदा जरूर हुआ हूं लेकिन मरूंगा नहीं। इसी के चलते उन्होंने 14 अक्टूबर 1956 को अपनी मृत्यु से दो माह पूर्व बौद्ध धर्म अपनाया। उन्होंने अपनी बायोग्राफी में लिखा कि "व्यक्ति के पांव में जूते हों या न हों लेकिन हाथ में किताब जरूर होनी चाहिए "।उनके इस कथन से आज के युवा वर्ग को सीख लेने की जरूरत है कि वह अपना ज्यादा से ज्यादा समय शिक्षा में लगाएं ताकि उनका जीवन स्तर सुधरे व देश और समाज आगे बढ़े। समाज और राष्ट्र के प्रति उनके इसी दर्शन और चिंतन के कारण आज उन्हें भारतीय संविधान के जनक और गणराज्य राष्ट्र के निर्माता के रूप में जाना जाता है। इसके साथ-साथ पूरे विश्व में उनकी महान समाज सुधारक और अनथक योद्धा के रूप में अद्भुत पहचान है। कोटि-कोटि नमन है ऐसी महान विभूति को जिन्होंने अपने बच्चों तक का महान बलिदान देकर देश के करोड़ों - करोड़ों लोगों को सिर ऊंचा कर जीने का पाठ पढ़ाया।
डॉ भीमराव अंबेडकर के जन्मदिवस पर सभी भारतवासी प्रण लें कि हम लोकसभा के 2024 आम चुनाव में अपने मत का प्रयोग कर भारतीय लोकतंत्र को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे । यह संविधान रचयिता को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
लेखक ---
सतीश मेहरा
उपनिदेशक ,प्रेस (से)
हरियाणा राजभवन।